समाजशास्‍त्र / Sociology

असहभागी अवलोकन का अर्थ, गुण (लाभ), दोष या सीमाएँ

असहभागी अवलोकन का अर्थ
असहभागी अवलोकन का अर्थ

असहभागी अवलोकन का अर्थ (Meaning of Non-participant Observation)

असहभागी अवलोकन का अर्थ (Meaning of Non-participant Observation)- यह अवलोकन सहभागी अवलोकन के ठीक विपरीत है। इसके अन्तर्गत अवलोकनकर्त्ता किसी समूह के जीवन में प्रत्यक्ष रूप से भाग न लेकर बल्कि पृथक रूप से उनकी क्रियाओं का अध्ययन करता है, अर्थात् इस विधि में अध्ययनकर्त्ता समूह में न तो अपना लम्बा समय व्यतीत करता है और न ही उनकी गतिविधियों में भाग लेता है। इसमें वह लोगों को पूर्व सूचना दिये बिना घटनाओं के समय उपस्थित होकर जानकारी प्राप्त करता है। वह जो कुछ भी देखता है उसका गहराई से अध्ययन करता है। इस विधि का प्रयोग प्रायोगिक अवलोकन के लिए अधिक होता है।

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असहभागी अवलोकन के गुण (लाभ) [Merits (Advantages) of Non-participant Observation]

असहभागी अवलोकन के प्रमुख गुण (लाभ) निम्नलिखित हैं-

1. असहभागी अवलोकन में अवलोकनकर्ता किसी समूह के जीवन से भाग लिए बिना समूह क्रियाओं से अलग रहकर एक वैज्ञानिक की भाँति तटस्थ दृष्टा के रूप में उनका अध्ययन करता है, अतः उसकी उपस्थिति से घटनाएँ प्रभावित नहीं होती हैं और अध्ययन में वैज्ञानिकता व वैषयिकता बनी रहती

2. यह पद्धति अपेक्षाकृत कम खर्चीली है।

3. इस पद्धति में विश्वसनीयता अधिक पायी जाती है, क्योंकि अवलोकनकर्ता समूह में शामिल नहीं होता है बल्कि वह विश्वास के आधार पर ही काम करता है।

4. अवलोकनकर्ता एक दर्शक की भाँति दूर बैठकर आनन्द ले सकता है।

5. इसमें अवलोकनकर्ता समुदाय के किसी विशिष्ट समूह के साथ घुलता-मिलता नहीं है, अतः सभी लोग उसे आदरणीय दृष्टि से देखते हैं।

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असहभागी अवलोकन के दोष या सीमाएँ (Demerits or Limitations of Non-participant Observation)

असहभागी अवलोकन के दोष या सीमाएँ निम्नलिखित हैं-

1. असहभागी अवलोकन में घटनाओं की मौलिकता नष्ट हो जाती है, क्योंकि अध्ययनकर्ता उन्हें अपनी ही दृष्टि से देखता है।

2. इसमें कभी-कभी उन घटनाओं का अध्ययन नहीं हो पाता है जो आकस्मिक रूप से घटित होती हैं।

3. इसमें समस्या के सम्बन्ध में केवल सतही ज्ञान हो पाता है, न कि विस्तृत ।

4. यह विधि वहाँ पर अनुपयुक्त हो जाती है जहाँ पर अध्ययन की जानकारी केवल सहभागी विधि द्वारा ही ज्ञात की जा सकती है।

5. गुडे एवं हॉट का मानना है कि विशुद्ध असहभागी अवलोकन कठिन है, अतः अध्ययनकर्ता को कुछ न कुछ सीमा तक तो सहभागी होना ही पड़ता है।

6. इसमें समूह के लोग अध्ययनकर्ता को संदिग्ध दृष्टि से देखते हैं और उसके सम्मुख कृत्रिम व्यवहार करने लगते हैं।

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shubham yadav

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