समाजशास्‍त्र / Sociology

साक्षात्कार अनुसूची का महत्व | Importance of Interview Schedule in Hindi

साक्षात्कार अनुसूची का महत्व
साक्षात्कार अनुसूची का महत्व

साक्षात्कार अनुसूची का महत्व की व्याख्या कीजिये।

साक्षात्कार अनुसूची का महत्व – यह विधि साक्षात्कारकर्ता और उत्तरदाता के आमने-सामने के सम्बन्धों पर आधारित है। इसमें निश्चित प्रश्न होते हैं। कुछ रिक्त सारणियाँ भी हो सकती हैं। प्रश्नकर्ता उत्तरदाता से पूछ-पूछ कर इसको लिखता और भरता जाता है। इसके द्वारा साक्षात्कार को व्यवस्थित एवं क्रमबद्ध किया जाता है। इनसे प्राप्त सूचनाओं का वर्गीकरण एवं सारणीयन बहुत आसान होता है। सहायक सूचनाओं की प्राप्ति संग्रहित सामग्री की जाँच अथवा अध्ययन को प्रारम्भ करने के लिये इस प्रकार की अनुसूची का प्रयोग किया जाता है। साक्षात्कार अनुसूची का सामाजिक अनुसन्धान में बहुत अधिक महत्व है जैसा कि निम्न वर्णन से स्पष्ट है –

1. विश्वसनीय एवं प्रमाणिक सूचनाएँ प्राप्त करना

साक्षात्कार अनुसूची में स्वयं अनुसन्धानकर्त्ता साक्षात्कार एवं अवलोकन के आधार पर वैध एवं विश्वसनीय सूचनाओं को संकलित करता है। वह स्वयं उत्तरदाता से प्रश्न पूछता है और स्वयं ही उसे भरता है, इसलिये उत्तरों के गलत होने की सम्भावना भी नहीं होती है।

2. सटीक और संक्षिप्त उत्तर

चूँकि अनुसन्धानकर्ता स्वयं ही उत्तरदाता से प्रश्न पूछता और उसके उत्तर भरता है इसलिये वह विषय से सीधे सम्बन्धित प्रश्न ही पूछता है और प्रश्नों का स्वरूप भी बहुत संक्षिप्त होता है ताकि वह आसानी से उत्तरदाताओं को अपने प्रश्नों को समझा सके और उत्तरदाता आसानी हाँ / या कम से कम शब्दों में अपना उत्तर प्रस्तुत कर सके।

3. प्राथमिक सम्बन्धों के आधार पर प्राथमिक सूचनाएँ

उत्तरदाता और अनुसन्धानकर्ता के मध्य वार्तालाप चूँकि आमने-सामने का होता है, उनमें पारदर्शिता होती है, इसलिए प्रश्नों के उत्तर भी सही व तार्किक प्राप्त होते हैं और सूचनाएँ भी प्राथमिक आधार पर ही प्राप्त होती हैं। इसमें उत्तरदाता अनुसन्धानकर्ता के सामने बैठकर उत्तर देता है इसलिये अनुसन्धानकर्त्ता के लिये प्राप्त सूचनाओं का सत्यापन करना सरल होता है क्योंकि उसने वह सभी सूचनाएँ सामने बैठकर स्वयं ही संग्रहीत की होती हैं।

4. घटनाओं का अवलोकन

अनुसन्धानकर्ता, उत्तरदाता के सामने बैठकर सूचनाओं को संग्रहीत करता है इसलिये वह घटनाओं का भी अवलोकन कर सकता है। यदि कोई उत्तरदाता किसी दबाव के कारण जवाब नहीं देता है तो अनुसन्धानकर्ता उसकी समस्या का निवारण कर, उसे समझा-बुझा कर उससे सही उत्तर प्राप्त करता है या कभी-कभी उत्तरदाता उत्तर देने में अनिच्छा व्यक्त करता है या आलस्य करता है तो अनुसन्धानकर्ता उसे प्रेरित करके अपने प्रश्नों के उत्तर प्राप्त कर लेता है।

5. स्मरण शक्ति पर अतिरिक्त बोझ नहीं

अनुसन्धाकर्ता अपने अध्ययन क्षेत्र में जाकर उत्तरदाता से स्वयं ही ‘साक्षात्कार अनुसूची के द्वारा प्रश्न पूछता है और उसके उत्तर भी स्वयं ही भरता जाता है। इसलिये उसे प्रश्नों के उत्तर याद नहीं करने पड़ते हैं, वह उन्हें तुरन्त प्रश्नों के आगे लिख लेता है या सही का चिन्ह () लगा लेता है। इससे अनुसन्धानकर्ता की स्मरण शक्ति पर अतिरिक्त बोझ भी नहीं पड़ता है।

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shubham yadav

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