अनुक्रम (Contents)
जल में घुलनशील विटामिन
(i) थायमीन या विटामिन B1
थायमीन ‘B’ समुदाय का एक महत्त्वपूर्ण विटामिन है। प्रत्येक भोज्य पदार्थ में यह विटामिन अल्प मात्रा में तो पाया ही जाता है।
थायमीन या विटामिन B1 के स्त्रोत
वानस्पतिक खाद्य पदार्थों में अनाज (गेहूं, चावल), दालें और फल थायमीन के अच्छे स्रोत हैं। पशुजन्य खाद्य पदार्थों में अण्डे की जरदी, मांस, मछली थायमीन के अच्छे स्रोत हैं।
थायमीन या विटामिन B1 के कार्य
(a) कार्बोहाइड्रेट के चपापचय में थायमीन की महत्त्वपूर्ण भूमिका है।
(b) पाचन तन्त्र एवं तन्त्रिका तन्त्र के सुचारु संचालन में इसकी भूमिका महत्त्वपूर्ण है। कमी के परिणाम-थायेमीन की कमी से बेरी-बेरी और वर्निक मस्तिष्कविकृति होती है।
(ii) राइबोफ्लेविन या विटामिन B2
विटामिन B2, शारीरिक स्वास्थ्य को बनाए रखने एवं ऊर्जा प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
विटामिन B2 के स्त्रोत
वानस्पतिक खाद्य पदार्थों में साबुत अनाज (गेहूँ, बाजरा, चावल), दालें और हरी पत्तेदार सब्जियों में यह विटामिन पाया जाता है। पशुजन्य खाद्य पदार्थों में दूध और दूध से निर्मित पदार्थ, अण्डे, मांस, मछली में भी पाया जाता है।
विटामिन B2 के कार्य
(a) कार्बोहाइड्रेट, वसा और प्रोटीन के चयापचय में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
(b) हीमोग्लोबिन के निर्माण में भी इसकी भूमिका महत्त्वपूर्ण है।
कमी के परिणाम
राइबोफ्लेविन की कमी से जीभ एवं मुख में जलन एवं त्वचाशोध होता है।
(iii) विटामिन B3 या नियासिन
नियासिन ‘B3’ समुदाय के विटामिन का एक अन्य सदस्य है। स्त्रोत – वनस्पतिजन्य खाद्य पदार्थों में साबुत अनाज, दालें, तिलहन और गिरीदार फल में नियासिन प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। पशुजन्य खाद्य पदार्थों में अंडे, मांस, मछली, कलेजी में भी नियासिन पाया जाता है।
कार्य
(a) कार्बोहाइड्रेट, वसा और प्रोटीन के चयापचय में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
(b) पाचन तंत्र, तन्त्रिका तन्त्र एवं त्वचा के सामान्य स्वास्थ्य में इसकी भूमिका महत्त्वपूर्ण है।
कमी के परिणाम
नियासिन की कमी पेलाग्रा नामक रोग होता है। जीभ में छाले, शल्की त्लचा एवं अतिसार इस रोग के लक्षण हैं।
(iv) विटामिन B6 या पायरीडॉक्सिन
पायरीडॉक्सिन भी ‘बी’ समुदाय के विटामिन का एक अन्य सदस्य है। यह तीन रूपों पायरीडॉक्सिन, पायरीडॉक्सिन एवं पायरीडॉक्सामाइन में पाया जाता है।
स्त्रोत
वनस्पतिजन्य खाद्य पदार्थों में अनाज, तिलहन और हरी पत्तेदार सब्जियों में पायरीडॉक्सिन प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। पशुजन्य खाद्य पदार्थों में मांस, मछली, कलेजी आदि में पायरीडॉक्सिन पाया जाता है।
कार्य
कार्बोहाइड्रेट, वसा और एमीनो एसिड के चयापचय में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
कमी के परिणाम
पायरीडॉक्सिन की कमी से पेशी-स्फुरण के साथ बेहोशी और ऐंठन त्वचा विक्षति होती है।
(v) विटामिन B12, या कोबालेमिन
कोबालेमिन की हमारे शरीर में बहुत अल्प मात्रा में आवश्यकता होती है।
स्रोत
वनस्पतिजन्य खाद्य पदार्थों विटामिन B या कोबालेमिन नहीं पाया जाता है। यह 12 विटामिन केवल पशुजन्य खाद्य पदार्थों में पाया जाता है। दूध, कलेजी, अंडे, दूध एवं समुद्री खाद्य पदार्थों (झींगा, केंकड़ा) में पाया जाता है।
कार्य
(a) पाचन तंत्र, तन्त्रिका तन्त्र एवं अस्थिमज्जा के सुचारु रूप से कार्य करने में इसकी भूमिका महत्त्वपूर्ण है।
(b) लाल रक्त कणिकाओं के निर्माण में भी कोबालेमिन विटामिन की भूमिका महत्त्वपूर्ण है।
कमी के परिणाम
कोबालेमिन की कमी से अरक्तता और बाँझपन जैसी समस्याएँ हो सकती हैं।
(vi) फोलिक एसिड
फोलिक एसिड को ‘फोलासिन’ भी कहते हैं। भोजन में फोलिक एसिड व्यापक रूप से पाया जाता है।
स्त्रोत
वनस्पति जन्य खाद्य पदार्थों में साबुत अनाज और दालों में यह प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। पशुजन्य खाद्य पदार्थों दूध, कलेजी, अण्डे, दूध एवं दूध से बने खाद्य पदार्थों (मलाई, खोया, पनीर, घी) में पाया जाता है।
कार्य
फोलिक एसिड लाल रक्तकणिका के उचित विकास के लिए आवश्यक है।
कमी के परिणाम
फोलिक एसिड की कमी से अरक्तता की समस्या हो सकती है।
(vii) पेंटाथोनिक एसिड
पेंटाथोनिक एसिड को विटामिन B के नाम से भी जाना जाता है। शरीर में कोलेस्ट्रॉल के संश्लेषण के लिए पेंटाथोनिक एसिड की आवश्यकता होती है।
स्त्रोत
वनस्पतिजन्य खाद्य पदार्थों में साबुत अनाज, दालों और हरी पत्तेदार सब्जियों में यह प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। पशुजन्य खाद्य पदार्थों कलेजी, अण्डा, पीतक, मांस, दूध एवं दूध से बने खाद्य पदार्थों (मलाई, खोया, पनीर, घी) में पाया जाता है।
कार्य
(a) पेंटाथोनिक एसिड लाल रक्त कणिकाओं के निर्माण में सहायक है।
(b) अधिवृक्क ग्रन्थियों से निकलने वाले सेक्स और तनाव से सम्बन्धित हॉर्मोनो के निर्माण में सहायक है।
कमी के परिणाम
इसकी कमी से थकान, अनिंद्रा, तनाव, चिड़चिड़ापन आदि समस्याएँ देखने को मिलती हैं।
(viii) ऐस्कॉर्बिक एसिड(विटामिन ‘C’)
ताजा फलों और सब्जियों में विटामिन ‘C’ की मात्रा अधिक होती है जो संग्रह करने या पकाने पर नष्ट हो जाता है। इसलिए विटामिन ‘C’ या ऐस्कॉर्बिक एसिड को फ्रेश फूड’ विटामिन भी कहते हैं। यह उच्च तापमान ऑक्सीकरण और सूखने से जल्दी से नष्ट हो जाता है, इसलिए विटामिन ‘C’ सभी विटामिनों में सबसे अधिक अस्थिर विटामिन है।
स्त्रोत
वनस्पतिजन्य खाद्य पदार्थों में हरी पत्तेदार सब्जियों, हरी मिर्च, शिमला मिर्च, जड़ वाली सब्जियों में आलू, शकरकन्दी में विटामिन ‘C’ पाया जाता है। इसके अतिरिक्त खट्टे फलों जैसे खू, आँवला, अमरूद, संतरा, मौसमी तथा सेब आदि में भी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। पशुजन्य वाद्य पदार्थों दूध, अण्डे, मांस, मछली आदि में विटामिन ‘C’ की मात्रा अत्यन्त ही अल्प होती है।
कार्य
(a) विटामिन ‘C’ घाव एवं चोट के भरने में सहायक होता है।
(b) यह लाल रक्तकणिका के मुख्य अवयव लौह तत्त्व के अवशोषण में सहायता करता है।
(c) यह भोजन और शरीर में असंतृप्त वसीय अम्लों को नष्ट होने से बचाता है।
(d) चोट, संक्रमण और तनावपूर्ण परिस्थितियों को नियंत्रित करने में सहायक होता है।
कमी के परिणाम
विटामिन ‘C’ या ऐस्कॉर्बिक एसिड की कमी से स्कर्वी नामक रोग होता है।
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