स्वास्थ्य एवं शारीरिक शिक्षा

जल के स्त्रोत तथा हमारे शरीर में जल के कार्य- Jal Ke Karya

जल के स्त्रोत तथा हमारे शरीर में जल के कार्य
जल के स्त्रोत तथा हमारे शरीर में जल के कार्य

जल

‘जल ही जीवन है’ यह उक्ति जीवन में जल के महत्त्व को इंगित करती है। वस्तुतः कोई भी प्राणि जल के बिना अधिक समय तक जीवित नहीं रह सकता। जल मानव की मौलिक आवश्यकता है। जल भोजन में अधिक मात्रा में पाया जाने वाला पोषक तत्त्व है जो तत्त्व से मिलकर बना होता है। ये दो तत्त्व हैं— ऑक्सीजन एवं हाइड्रोजन । जल में ऑक्सीजन एवं हाइड्रोजन 2:1 में होते हैं। जल का रासायनिक सूत्र H₂O है। जल में खनिज लवण जैसे पोटैशियम और सोडियम होते हैं। इसीलिए जल को पोषक तत्त्व के अतिरिक्त भोजन भी माना जा सकता है।

जल के स्त्रोत

शरीर को जल मुख्यतः तीन स्रोतों से प्राप्त होता है—

 (i) पेय जल और पेय पदार्थ—इसमें जल तथा अन्य पेय पदार्थ, जैसे-चाय, कॉफी, फलों का रस आदि आते हैं।

(ii) भोज्य पदार्थ से प्राप्त जल–अधिकांश भोज्य पदार्थों में जल अदृश्य अवस्था में होता हैं। इन भोज्य पदार्थों में जल की मात्रा भिन्न-भिन्न होती है। सब्जियों, फलों तथा दूध में जल की मात्रा अधिक होती है और अनाज एवं दालों में जल की मात्रा कम होती है।

(iii) चयापचय क्रिया द्वारा उत्पन्न जल-शरीर में कुछ मात्रा में (लगभग 800 मिली.) जल कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और वसा की चयापचय अभिक्रियाओं के फलस्वरूप बनाता है।

जल के कार्य

शरीर में जल के मुख्य कार्य निम्न हैं—

(i) जल मानव शरीर का मुख्य घटक–एक वयस्क मानव के कुल शरीर भार का लगभग 70 प्रतिशत जल होता है। शरीर की विभिन्न कोशिकाओं एवं ऊतकों में जल भिन्न-भिन्न मात्रा में पाया जाता है।

(a) अन्तः कोशिका द्रव – कुल शरीर भार का लगभग 50 प्रतिशत ।

(b) अंतरातलीय द्रव – कुल शरीर भार का लगभग 15 प्रतिशत ।

(c) रक्त- कुल शरीर भार का लगभग 5 प्रतिशत ।

(ii) जल जैव शारीरिक तरलों का मुख्य घटक-जल सभी शरीर के द्रव्यों, जैसे-रक्त, लसीका, लार, मस्तिष्क, मेरुतरल, पाचक रसों, मूत्र, मल तथा पसीने को तरलता प्रदान करता है।

(iii) जल शारीरिक तापमान नियंत्रण में सहायक-पोषण तत्त्वों जैसे कार्बोहाइड्रेट, वसा और प्रोटीन के ऑक्सीकरण से ऊर्जा या ऊष्मा उत्पन्न होती है। जल इस ऊष्मा को शरीर में पहुँचाने में सहायता करता है। जल की कुछ मात्रा शरीर से वाष्पित होकर शरीर को शीतल रखती है। इस प्रकार अतिरिक्त ऊष्मा शरीर से बाहर निकल जाती है तथा शरीर का तापमान सामान्य बना रहता है।

(iv) जल शरीर में पोषकों के परिवहन में सहायक-जल एक अच्छा विलायक होने के कारण विभिन्न पदार्थ एवं तत्त्व इसमें घुल जाते हैं और इसी रूप में ही रक्त के द्वारा शरीर के विभिन्न भागों में पहुँचा दिए जाते हैं।

(v) जल शरीर की कोशिकाओं और ऊतकों को आर्द्र रखने में सहायक-जल कोशिकाओं और ऊतकों को घेरे रहता है। पाचक रसों में उपस्थित जल भोजन की गति को नियंत्रित करता है। पाचन क्रिया के रूप में जल के स्वरूप में कोई परिवर्तन नहीं होता तथा इसी रूप में शरीर में अवशोषित हो जाता है।

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shubham yadav

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