वैयक्तिक अध्ययन पद्धति के दोष अथवा सीमाएँ बताइये|
वैयक्तिक अध्ययन पद्धति के दोष अथवा सीमाएँ निम्नलिखित हैं-
1. यह अवैज्ञानिक विधि है, क्योंकि इसमें कुछ इकाइयों के अध्ययन के आधार पर ही निष्कर्ष निकाले जाते हैं।
2. इसमें केवल कुछ इकाइयों का चयन करके ही अध्ययन किया जाता है।
3. यह अत्यधिक खर्चीली एवं अधिक समय लेने वाली पद्धति है।
4. इसका सामान्यीकरण दोषपूर्ण है।
5. इस विधि में निदर्शन का अभाव पाया जाता है।
6. इसका जीवन इतिहास दोषपूर्ण है।
7. वैयक्तिक विषयों में प्राप्त सामग्री को विश्वसनीय नहीं कहा जा सकता, क्योंकि कई बार रिकार्ड अपूर्ण एवं त्रुटिपूर्ण होते हैं।
8. इसमें अध्ययनकर्ता आवश्यकता से अधिक विश्वास कर लेता है। 9. इसमें सामग्री की विश्वसनीयता की जाँच असम्भव है।
10. इस विधि में अनुसन्धानकर्ता के पक्षपात की सम्भावना रहती है।
इस विधि के दोषों का उल्लेख करते हुए कुछ प्रमुख विद्वानों ने लिखा है कि –
“यह विधि अवैयक्तिक, सार्वभौमिक, नैतिकता रहित, व्यावहारिकता रहित तथा पुनरावृत्ति मूलक घटनाओं को उपलब्ध नहीं करा सकती।”- प्रो. रीडबेन
“वैयक्तिक अध्ययन पद्धति अपने आय में कोई वैज्ञानिक विधि नहीं है वरन् वैज्ञानिक कार्यविधि का एक प्रथम चरण मात्र है।”- लुण्डबर्ग
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