समाजशास्‍त्र / Sociology

वैयक्तिक अध्ययन पद्धति का अर्थ, परिभाषाएँ, आधारभूत मान्यताएँ, विशेषताएँ, प्रकार तथा प्रक्रिया (प्रणाली)

वैयक्तिक अध्ययन पद्धति
वैयक्तिक अध्ययन पद्धति

वैयक्तिक अध्ययन पद्धति का अर्थ एवं परिभाषाएँ (Meaning and Definitions of Case Study Method)

वैयक्तिक अध्ययन पद्धति का अर्थ एवं परिभाषाएँ- समाजशास्त्र में वैयक्तिक अध्ययन पद्धति का प्रयोग सर्वप्रथम हरबर्ट स्पेन्सर ने किया था, किन्तु इसका व्यवस्थित एवं वैज्ञानिक रूप में प्रयोग करने का श्रेय चार्ल्स लीप्ले को जाता है। यह पद्धति गुणात्मक पद्धति का ही एक रूप है जिसमें किसी व्यक्ति, संस्था या समुदाय के बारे में पूर्ण एवं गहन जानकारी प्राप्त की जाती है। विभिन्न विद्वानों ने इसे निम्न प्रकार से परिभाषित किया है।

“वैयक्तिक अध्ययन पद्धति किसी एक सामाजिक इकाई चाहे वह एक व्यक्ति, एक परिवार, एक संस्था, एक सांस्कृतिक समूह अथवा सम्पूर्ण समुदाय क्यों न हो, के जीवन की खोज तथा विश्लेषण की पद्धति हो ।”- वी. पी. यंग

“वैयक्तिक अध्ययन एक प्रविधि है जिसके द्वारा प्रत्येक व्यक्तिगत कारक चाहे वह संस्था हो अथवा एक व्यक्ति या समूह के जीवन की पूर्ण घटना हो, का विश्लेषण उस समूह की किसी भी अन्य इकाई के सन्दर्भ में किया जाता है।”- ओडम तथा जोचर

“वैयक्तिक अध्ययन पद्धति गुणात्मक विश्लेषण का एक रूप है, जिसमें एक व्यक्ति, एक परिस्थिति या संस्था का सावधानीपूर्वक तथा पूर्ण विश्लेषण किया जाता है।”- बीसेन्ज एवं बीसेन्ज

“अध्ययन किया जाने वाला वैयक्तिक विषय केवल एक व्यक्ति अथवा उसके जीवन की एक घटना अथवा विचारपूर्ण दृष्टि से एक राष्ट्र या इतिहास का एक युग भी हो सकता है।”– गिडिंग्स

वैयक्तिक अध्ययन पद्धति की आधारभूत मान्यताएँ (Basic Assumptions of Case Study Method)

वैयक्तिक अध्ययन पद्धति की आधारभूत मान्यताएँ निम्नलिखित हैं-

1. मानवता व्यवहार की समानता (Similarity of Human Behaviour) – वैयक्तिक अध्ययन पद्धति की प्रमुख मान्यता यह है कि मानव-व्यवहार में मौलिक एकता पायी जाती है। समान परिस्थितियों में सभी मनुष्यों के व्यवहार में समानता पायी जाती है, क्योंकि उनकी मूल प्रकृति, प्रेरक एवं प्रवृत्तियों में समानता पायी जाती है।

2. समय तत्व का प्रभाव (Influence of Time Factor)- मानवीय व्यवहार एवं किसी घटना पर समय तत्व का भी प्रभाव पड़ता है। आज घटने वाली प्रत्येक घटना भूतकाल की अनेक घटनाओं एवं प्रभावों का प्रतिफल है। अतः किसी भी घटना को समझने के लिए उसका भूतकाल जानना अति आवश्यक है। इस अध्ययन पद्धति में घटना को कालक्रम में कार्य करण सम्बन्धों के आधार पर देखा जाता है।

3. सामाजिक घटनाओं की जटिलता (Complexity of Social Phenomena)- सामाजिक घटनाओं की जटिलता के कारण उन्हें आसानी से समझा नहीं जा सकता है। मानव व्यवहार अमूर्त होता है जिसके कारण उसे ज्ञात करना कठिन होता है। मानव व्यवहार की जटिलता का अध्ययन इसी विधि द्वारा सम्भव है।

4. सम्पूर्ण अध्ययन (Whole Study)- वैयक्तिक अध्ययन पद्धति में सभी पक्षों का अध्ययन किया जाता है न कि किसी एक पक्ष का। इसमें समय अवश्य अधिक लगता है, किन्तु जीवन की सम्पूर्णता में ही वास्तविक अध्ययन सम्भव है।

5. परिस्थितियों की पुनरावृत्ति (Repetition of Conditions)- मानव व्यवहार पर परिस्थितियों का प्रभाव पड़ता है। मनुष्य एक ही परिस्थिति में किस प्रकार का व्यवहार करता है, यह एक इकाई के सम्पूर्ण अध्ययन द्वारा ज्ञात किया जा सकता है।

वैयक्तिक अध्ययन पद्धति की विशेषताएँ (Characteristics of Case Study Method)

वैयक्तिक अध्ययन पद्धति की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

1. अध्ययन की एक विशिष्ट इकाई (A Specific Unit of Study)- इसके अन्तर्गत एक या कुछ विशिष्ट इकाइयों का अध्ययन किया जाता है। जैसे व्यक्ति, परिवार, जाति, संस्था अथवा सम्पूर्ण समुदाय आदि। इसकी इकाई सम्बन्ध तथा प्रक्रिया भी हो सकती है। इस सम्बन्ध में गिडिंग्स ने लिखा है कि

“यह इकाई जीवन की एक प्रघटना या एक ऐतिहासिक युग भी हो सकता है। वह इकाई जितनी भी छोटी होगी, उतना ही गहन अध्ययन इसको हो सकेगा।”

2. सम्पूर्ण अध्ययन (Whole Study)- इस पद्धति में किसी घटना अथवा इकाई के समस्त पहलुओं का अध्ययन किया जाता है। इसमें इकाई के समस्त जीवन को ही अध्ययन का केन्द्र बनाया जाता. है। इस सम्बन्ध में कुछ प्रमुख विद्वानों ने लिखा है कि

“यह ऐसी विधि है जो किसी सामाजिक इकाई को सम्पूर्णता देखती है।”– गुडे एवं हाट

“इसमें वैयक्तिक तथ्यों को उनके सम्पूर्ण जीवन चक्र के रूप में संकलित किया जाता है।”- श्रीमती पी. वी. यंग

3. गुणात्मक अध्ययन (Qualitative Study)- वैयक्तिक अध्ययन में गुणात्मक अध्ययन  किया जाता है न कि संख्यात्मक। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि इकाई के सम्बन्ध में ऑकड़ और संख्या पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता है, निष्कर्ष भी संख्याओं में प्रकट नहीं किए जाते हैं। इसमें इकाई का जीवन-इतिहास और वर्णनात्मक उल्लेख तैयार किया जाता है।

4. गहन अध्ययन (Intensive Study)- इस पद्धति के अन्तर्गत इकाई के सम्बन्ध में सूक्ष्म एवं गहन जानकारी प्राप्त की जाती है। सम्बन्धित इकाई का अध्ययन भूतकाल से लेकर वर्तमान काल किया जाता है। इसमें धन एवं समय अधिक लगता है।

वैयक्तिक अध्ययन के प्रकार (Types of Case Study)

वैयक्तिक अध्ययन निम्नलिखित दो प्रकार का होता है –

1. व्यक्ति का अध्ययन (Case Study of an Individual)- इसके अन्तर्गत किसी व्यक्ति के सम्पूर्ण जीवन अथवा जीवन की किसी विशेष घटना का अध्ययन किया जाता है। व्यक्ति के परिवार के सदस्यों एवं उससे सम्बन्धित व्यक्तियों से सम्पर्क करके उसके विषय में आवश्यक सूचनाएँ संकलित की जाती हैं। इस विधि में व्यक्ति के परिवार में उसके सदस्यों, पडोस, मित्र-मण्डली, पत्र-डायरी, आत्मकथा लेख, संस्मरण एवं जीवन इतिहास आदि स्रोतों से जानकारी प्राप्त की जाती है।

2. समुदाय का वैयक्तिक अध्ययन (Case Study of a Community)- इसके अन्तर्गत किसी समूह, संस्था, जाति अथवा समुदाय का अध्ययन किया जाता है। इस सम्बन्ध में एक विचार उल्लेखनीय है –

“वैयक्तिक अध्ययन द्वारा सम्पूर्ण समुदाय की खोज की जाती है। इसमें बौद्धिक कुशलता, अनुभव एवं सतर्कता की आवश्यकता होती है। एक समुदाय का वैयक्तिक अध्ययन उसकी आन्तरिक स्थिति का पूर्ण रूप से अध्ययन हेतु सामग्री संकलन की व्यवस्थित पद्धति है। इसके लिए उन्हीं साधनों का प्रयोग किया जाता है जो साधन एक व्यक्ति के वैयक्तिक अध्ययन के लिए प्रयुक्त किये जाते हैं।”– श्रीमती पी. वी. यंग

वैयक्तिक अध्ययन की प्रक्रिया (प्रणाली) (Procedure of Case Study)

वैयक्तिक अध्ययन की प्रक्रिया को निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत स्पष्ट किया गया है –

(1) समस्या का विवरण (Statement of Problem)- वैयक्तिक अध्ययन प्रक्रिया के अन्तर्गत सर्वप्रथम उस समस्या की स्पष्ट व्याख्या की जाती है जिसके बारे में सूचना एकत्र करनी होती है, तत्पश्चात् इसके सम्बन्ध में भूत एवं वर्तमान की समस्त सूचनाओं को संकलित किया जाता है। यह पूर्व में ही निर्धारण कर लिया जाता है कि समस्या के किस पक्ष की व्याख्या करनी है। इसमें निम्नलिखित बातों पर विशेष ध्यान दिया जाता है-

(i) किन व्यक्तिगत विषयों पर अध्ययन किया जाएगा ?

(ii) इकाइयों के प्रकार एवं संख्या का निर्धारण कैसे किया जाएगा?

(iii) समस्या के किन-किन पक्षों का अध्ययन किया जाएगा ?

(2) घटनाओं का क्रम (Course of Events)- समस्याओं की व्याख्या कर लेने के पश्चात् यह आवश्यक है कि उससे सम्बन्धित घटनाओं को व्यवस्थित क्रम में रखा जाए। तत्पश्चात् इस बात की जानकारी हासिल की जाती है कि किन अवस्थाओं में किस समय समस्या के स्वरूप में क्या-क्या परिवर्तन हुए ? घटनाओं के उच्चावचन के द्वारा भविष्य में होने वाले परिवर्तनों को समझा जा सकता है।

(3) निर्धारक कारक (Determinant Factors)- इसके अन्तर्गत किसी घटना के लिए उत्तरदायी कारकों का भी निर्धारण किया जाता है। ये निम्नलिखित दो प्रकार के होते हैं –

(i) प्रमुख कारक किसी घटना के घटित होने के लिए मूल रूप से उत्तरदायी कारक प्रमुख कारक कहलाते हैं।

(ii) सहायक कारक ये प्रमुख कारकों के सहायक कारक होते हैं।

(4) विश्लेषण और निष्कर्ष (Analysis and Conclusion)- यह वैयक्तिक अध्ययन पद्धति का अन्तिम चरण है। इसके अन्तर्गत तथ्यों एवं सूचनाओं के आधार पर घटना का विश्लेषण किया जाता है तथा निष्कर्ष निकाला जाता है। प्राप्त निष्कर्षो के आधार पर ही सामान्यीकरण किया जाता है। विश्लेषण के दौरान तथ्यों का वर्गीकरण, सारणीयन एवं संकेतीकरण किया जाता है। साथ ही समस्या का निदान एवं उपचार भी किया जाता है।

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shubham yadav

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