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वैयक्तिक अध्ययन की प्रक्रिया को समझाइए।
वैयक्तिक अध्ययन की प्रक्रिया को निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत स्पष्ट किया गया है-
(1) समस्या का विवरण (Statement of Problem)
वैयक्तिक अध्ययन प्रक्रिया के अन्तर्गत सर्वप्रथम उस समस्या की स्पष्ट व्याख्या की जाती है जिसके बारे में सूचना एकत्र करनी होती है, तत्पश्चात् इसके सम्बन्ध में भूत एवं वर्तमान की समस्त सूचनाओं को संकलित किया जाता है। यह पूर्व में ही निर्धारण कर लिया जाता है कि समस्या के किस पक्ष की व्याख्या करनी है। इसमें निम्नलिखित बातों पर विशेष ध्यान दिया जाता है –
(i) किन व्यक्तिगत विषयों पर अध्ययन किया जाएगा ?
(ii) इकाइयों के प्रकार एवं संख्या का निर्धारण कैसे किया जाएगा ?
(iii) समस्या के किन-किन पक्षों का अध्ययन किया जाएगा ?
(2) घटनाओं का क्रम (Course of Events)
समस्याओं की व्याख्या कर लेने के पश्चात् यह आवश्यक है कि उससे सम्बन्धित घटनाओं को व्यवस्थित क्रम में रखा जाए। तत्पश्चात् इस बात की जानकारी हासिल की जाती है कि किन अवस्थाओं में किस समय समस्या के स्वरूप में क्या-क्या परिवर्तन हुए ? घटनाओं के उच्चावचन के द्वारा भविष्य में होने वाले परिवर्तनों को समझा जा सकता है।
(3) निर्धारक कारक (Determinant Factors)
इसके अन्तर्गत किसी घटना के लिए उत्तरदायी कारकों का भी निर्धारण किया जाता है। ये निम्नलिखित दो प्रकार के होते हैं
(i) प्रमुख कारक- किसी घटना के घटित होने के लिए मूल रूप से उत्तरदायी कारक प्रमुख कारक कहलाते हैं।
(ii) सहायक कारक- ये प्रमुख कारकों के सहायक कारक होते हैं।
(4) विश्लेषण और निष्कर्ष (Analysis and Conclusion)
यह वैयक्तिक अध्ययन पद्धति का अन्तिम चरण है। इसके अन्तर्गत तथ्यों एवं सूचनाओं के आधार पर घटना का विश्लेषण किया जाता है तथा निष्कर्ष निकाला जाता है। प्राप्त निष्कर्षो के आधार पर ही सामान्यीकरण किया जाता है। विश्लेषण के दौरान तथ्यों का वर्गीकरण, सारणीयन एवं संकेतीकरण किया जाता है। साथ ही समस्या का निदान एवं उपचार भी किया जाता है।
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