समाजशास्‍त्र / Sociology

प्रतिचयन की विभिन्न विधियों का उल्लेख कीजिए।

प्रतिचयन की विभिन्न विधियां
प्रतिचयन की विभिन्न विधियां

प्रतिचयन की विभिन्न विधियां | Sampling in Hindi

प्रतिचयन की विभिन्न विधियां निम्नलिखित हैं-

स्तरित दैव निदर्शन (Stratified Random Sampling)

इस विधि के अन्तर्गत समग्र की सभी इकाइयों को बांट दिया जाता है, तत्पश्चात प्रत्येक वर्ग से दैवनिर्दशन द्वारा न्यादर्शों चुनाव कर लिया जाता है। समग्र में प्रायः जिस अनुपात में विजातीय इकाइयाँ पायी जाती हैं। लगभग उसी अनुपात में उपवर्गों में से इकाइयों छाँटनी चाहिए। उदाहरणार्थ, यदि किसी कक्षा में 50 विद्यार्थी हैं तो सर्वप्रथम साविचार निदर्शन द्वारा विद्यार्थियों को प्रथम श्रेणी, द्वितीय श्रेणी और तृतीय श्रेणी में बांटना होगा। माना प्रथम श्रेणी में 10, द्वितीय श्रेणी में 20 और तृतीय श्रेणी से 20 विद्यार्थी चुन लिये जायेंगे। इस प्रकार चुने गये 10 विद्यार्थी कक्षा का अधिकतम प्रतिनिधित्व करेंगे।

बहुस्तरीय दैव निदर्शन (Multi-stage Random Sampling)

इस विधि का प्रयोग प्रायः वहाँ किया जाता है जहाँ का समग्र काफी बड़ा होता है। इस विधि के अन्तर्गत न्यादर्शों का चुनाव कई स्तरों में आधार पर किया जाता है। प्रथम स्तर में समग्र की इकाइयों में से कुछ इकाइयाँ दैव निदर्शन विधि द्वारा न्यादर्श के रूप में चुनी जाती है। दूसरी अवस्था में पहली अवस्था में चुने गये न्यादर्शों समूह में से कुछ इकाइयों फिर से किसी उपयुक्त रीति द्वारा न्यादर्श के रूप में चुनी जाती हैं। इसी प्रकार तीसरी व चौथी अवस्था में चुने गये न्यादर्शों के समूह से न्यादर्श चुने जाते हैं। इस विधि को सर्वश्रेष्ठ रीति कहा जाता है क्योंकि इससे अधिक विश्वसनीय परिणाम प्राप्त होते हैं।

क्रमबद्ध निदर्शन (Sequential Sampling)

इस विधि का प्रयोग सांख्यिकीय गुणवत्ता नियंत्रण में व्यापक रूप से किया जाता है। लेकिन अन्य क्षेत्रों में भी इसका प्रयोग किया जा रहा है इस पद्धति में अन्य पद्धतियों के विपरीत पहले विभ्रम का परिणाम निश्चित करके पदों का चुनाव कर लिया। जाता है। यदि पहला निदर्शन किसी स्पष्ट परिणाम का संकेत नहीं देता है तो और अधिक इकाइयाँ दैव निदर्शन से चुनी जाती हैं और निदर्शन में जुड़ती रहती हैं। जब तक बड़े हुए निदर्शन से निण्रय संभव नहीं हो जाता है।

व्यवस्थित निदर्शन (Systematic Sampling) 

इस विधि के अन्तर्गत न्यादर्शों का चुनाव करने के लिये सर्वप्रथम समग्र की सभी इकाइयाँ को अंकात्मक या भौगोलिक या वर्णात्मक आधार पर व्यवस्थित कर लिया जाता है। फिर उनमें से हर दसवाँ या बीसवाँ नम्बर छाँट लिया जाता है। इस विधि का प्रयोग उस समय उचित नहीं रहता है जब इकाइयों के मूल्य में एक निश्चित गति के अनुसार परिवर्तन होता है। इकाइयों को क्रमानुसार लिखते समय उचित सावधानी रखनी चाहिए।

दैव निदर्शन (Random Sampling)

इस रीति के द्वारा चुनाव करते समय समग्र के सभी पदों को चुने जाने का समान अवसर दिया जाता है। इसलिये इस पद्धति में अनायास ही कुछ इकाइयों को चुन लिया जाता है। इसे न्यादर्श चयन की श्रेष्ठ विधि माना जाता है, क्योंकि इसमें इकाइयाँ स्वेच्छा से नहीं छाँटी जाती है। इसमें समग्र के किसी भाग के न्यादर्श में आ जाने की समान रूप से संभावना रहती है।

यह निदर्शन की ऐसी रीति है जिसमें समग्र की प्रत्येक इकाई को निदर्श में शामिल होने का बराबर अवसर होता है। मदों के चयन की कई विधियाँ हो सकती हैं जिनमें दैव निदर्शन किया जा सकता है। इस रीति द्वारा प्राप्त किये गये निष्कर्ष प्रायिकता के रूप में माने जा सकते हैं। दैव-निदर्शन दो प्रकार का हो सकता है –

1. प्रतिस्थापन सहित दैव निदर्शन 2. बिना प्रतिस्थापन के दैव निदर्शन।

दैव-निदर्शन में इकाइयों का चुनाव निम्न प्रकार से हो सकता है- (1) लाटरी के द्वारा (2) वर्णात्मक या संख्यात्मक क्रम द्वारा (3) ढोल घुमाकर (4) दैव निदर्शन सारिणियों द्वारा । 

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shubham yadav

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