अनुक्रम (Contents)
शारीरिक फिटनेस को प्रभावित करने वाले कारक
1. आयु– जीवनकाल को मुख्यतः पाँच भागों में विभाजित किया जाता है— शिशुकाल, बचपन, किशोर, प्रौढ़ावस्था और वृद्धावस्था। किशोर, प्रौढ़काल एवं वृद्धावस्था की फिटनेस संबंधी आवश्यकताओं में भिन्नता होती है, जहाँ किशोरों में शारीरिक परिवर्तन और शारीरिक अंगों का विकास हो रहा होता है, वहीं प्रौढ़काल में परिपक्वता के स्तर को प्राप्त कर लिया जाता है। इसी प्रकार वृद्धावस्था में शारीरिक क्रिया-कलाप घटते जाते हैं। अतः हर आयु वर्ग के लिए एक जैसा फिटनेस कार्यक्रम नहीं होना चाहिए।
2. लिंग– किशोरावस्था से पूर्वकाल में लड़के-लड़कियाँ कद, वजन और अन्य शारीरिक बनावट में लगभग एक समान होते हैं। किन्तु किशोरावस्था में उनमें शारीरिक एवं मनोवैज्ञानिक भिन्नताएँ उभरकर सामने आने लग हैं। अतः इन असमानताओं को ध्यान में रखकर दोनों वर्गों के लिए भिन्न-भिन्न फिटनेस कार्यक्रमों का विकास करना चाहिए।
3. वंशानुक्रम – आकृति, आकार, संरचना कद आदि कारक आनुवंशिकता से सम्बन्धित हैं जो शारीरिक फिटनेस एवं कल्याणकारी स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं। गामक फिटनेस से सम्बन्धित कारक गति, शक्ति एवं सहनशक्ति का निवास कुछ सीमा तक व्यक्ति की मांसपेशीय तन्तु संरचना पर भी निर्भर करता है।
4. उचित प्रशिक्षण- शारीरिक दक्षता में वृद्धि प्रशिक्षण प्रक्रिया के दौरान दिये जाने वाले उचित प्रशिक्षण भार पर निर्भर करता है। यदि प्रशिक्षण भार को प्रशिक्षण के वैज्ञानिक सिद्धान्तों का अनुपालन करते हुए संयोजित किया जाए तो अनुकूलता में समस्या नहीं आती और शारीरिक दक्षता का विकास होता है।
5. संतुलित आहार- असंतुलित आहार, अनियमित खान-पान, कुपोषण और अल्प-पोषण व्यक्ति की शारीरिक दक्षता को कम करते हैं जबकि संतुलित आहार शारीरिक फिटनेस और कल्याणकारी स्वास्थ्य को बढ़ावा देते हैं। व्यक्ति को आयु, लिंग, वजन, रोग और निष्पादित की जाने वाली शारीरिक गतिविधियों के अनुरूप संतुलित आहार ग्रहण करना चाहिए।
6. मानसिक थकान एवं तनाव- मानसिक तनाव, दबाव, थकान एवं चिंता जैसे कारक भी शारीरिक एवं कल्याणकारी स्वास्थ्य को नकारात्मक रूप से प्रभावित करते हैं। इन मानसिक कारकों को योग तकनीकों एवं आध्यात्मिक मार्गदर्शन के द्वारा प्रबंधन करके फिटनेस में सुधार ला सकते हैं।
7. विश्राम- कठोर परिश्रम या गहन अभ्यास के बाद समुचित आराम एवं विश्राम भी अति आवश्यक है, अन्यथा शारीरिक फिटनेस में कमी आती है। प्रशिक्षण या गहन अभ्यास के कारण होने वाली थकान से रिकवरी हो सके, इसके लिए आवश्यक है कि रिकवरी के सिद्धांतों का अनुपालन किया जाए। प्रशिक्षण अभ्यास समयावधि का नहीं होना चाहिए।
8. वातावरण– जलवायु, मौसम, तापमान, प्रदूषण एवं प्राकृतिक वातावरण भी शारीरिक फिटनेस और स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं। स्वच्छ एवं सुरक्षित प्राकृतिक वातावरण भी शारीरिक फिटनेस को प्राप्त करने में सहायक होता है।
9. स्वास्थ्य समस्याएँ- शारीरिक फिटनेस और कल्याणकारी स्वास्थ्य बीमारी तथा चोट से उपजी स्वास्थ्य समस्याओं से भी प्रभावित होता है। शारीरिक फिटनेस प्रभावित न हो इसके लिए हमें स्वास्थ्य शिक्षा के उपचारात्मक एवं निवारात्मक पहलुओं पर ध्यान देना चाहिए। इसके अतिरिक्त धूम्रपान, मद्यपान एवं हानिकारी ‘ड्रग्स’ का सेवन भी शारीरिक फिटनेस पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं, अतः इस प्रकार के व्यसन से दूर रहना चाहिए।
शारीरिक फिटनेस के लाभ
वर्ग के व्यक्ति नियमित रूप से शारीरिक गतिविधियों या व्यायाम के माध्यम से किसी भी आयु शारीरिक फिटनेस के अच्छे स्तर को प्राप्त कर सकते हैं और उसे बनाए भी रख सकते हैं। यदि आप प्रतिबद्धता के साथ नियमित व्यायाम एवं संतुलित आहार के सिद्धान्त का अनुपालन करते हैं, तो यह न केवल आपको गुणवत्तापरक जीवन जीने में सहायक होगा अपितु आपका असाध्य रोगों और शारीरिक अक्षमताओं से भी बचाव करेगा। शारीरिक फिटनेस के कुछ महत्त्वपूर्ण लाभ निम्न हैं-
उन्नत शारीरिक स्वास्थ्य
(1) हृदय और फेफड़ों की कार्यक्षमता में वृद्धि होती है।
(2) शरीर में हानिकारक कोलस्ट्राल (LDL) के स्तर में कमी आती है।
(3) मांसपेशियों की शक्ति और सहनशक्ति में वृद्धि होती है।
(4) हृदय रोग एवं मधुमेह जैसी बीमारियों का खतरा कम होता है। नियमित व्यायाम से मधुमेह रोगियों में ग्लूकोज का स्तर कम होता है तथा इंसुलिन-संवेदनशीलता बढ़ती है जिससे मधुमेह रोग का खतरा कम हो जाता है।
(5) शरीर में अतिरिक्त वसा कम होता है और मांसपेशीय तान (खिंचाव) में वृद्धि होती है।
उन्नत मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य
(1) नियमित व्यायाम से मानसिक तनाव, थकान एवं चिंता जैसे मनोवैज्ञानिक कारकों पर नियंत्रण होता है।
(2) नियमित व्यायाम से मस्तिष्क का विकास होता है। शारीरिक गतियाँ अल्जीमर रोग, मानसिक विघटन तथा अवसाद जैसी समस्या के खतरे को न्यून करती है।
(3) यह मस्तिष्क को मूड संवारने वाले एंडोरफिन नामक तत्त्व को मुक्त करने में सहायता देता है। इन तत्त्वों से व्यक्ति स्वयं अच्छे स्वास्थ्य एवं आनंद की अनुभूति करता है।
(4) यह व्यक्ति में आत्मसम्मान, आत्मबोध की भावना एवं आत्मविश्वास को बेहतर बनाता है।
(5) यह व्यक्ति में मानसिक सतर्कता, धारणा एवं मस्तिष्क की सूचना संसाधन क्षमता को बेहतर बनाता है।
उन्नत सामाजिक स्वास्थ्य
(1) व्यक्ति की आत्म छवि में सुधार आता है।
(2) व्यक्ति में सामाजिक दबावों से जूझने की योग्यता उन्नत होती है।
(3) सामाजिक समरसता एवं सामाजिक क्रिया-कलापों में भागीदारी के अवसर बढ़ते हैं।
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